आबंध या बन्ध के गुण ( Bond characteristics ) Bond parameters in Hindi रासायनिक आबंधन – आबंध या बन्ध के गुण-आबंध लम्बाई बन्ध ऊर्जा बन्ध कोण बन्ध कोटि से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
- आबंध बन्ध लम्बाई ( Bond length )
- आबंध ऊर्जा ( Bond energy )
- आबंध कोण ( Bond angle )
- आबन्ध कोटि ( Bond Order )
जैसे महत्वपूर्ण टॉपिक से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी है।
आबंध बन्ध लम्बाई ( Bond length )
दो बन्धीय परमाणुओं के केन्द्रकों के मध्य की दूरी बन्ध लम्बाई कहलाती है । इसे A या pm ( पिकोमीटर ) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है ।
( 1A = 10-10 m ) या ( 10-12 m ) .
आयनिक यौगिकों में बन्ध लम्बाई का मान दोनों परमाणुओं के आयनिक त्रिज्याओं के योग के बराबर होता है
( d = r+ + r– ) तथा सहसंयोजी यौगिकों में बन्ध लम्बाई उनकी सहसंयोजी त्रिज्याओं के योग के बराबर होती है
( HCl के लिए , d = rH + rCl )
आबंध लम्बाई को प्रभावित करने वाले कारक
- परमाणुओं का आकार बढ़ने पर इनकी बन्ध लम्बाई का मान भी जाता है H – X में लम्बाई होगा
HI > HBr > HCl > HF - बहुबन्धुता बढ़ने पर बन्ध लम्बाई घटती जाती है । कार्बन – कार्बन के मध्य बहुबन्धुता के आधार पर बन्ध लम्बाई , बहुबन्धुता के बढ़ने पर घटती है , C = C < C = C < C – C
- s- कक्षक आकार में छोटा होता है । अतः संकरण में s लक्षण के बढ़ने पर संकरित कक्षक आकार में छोटा होगा तथा बन्ध लम्बाई भी उतनी ही कम हो जायेगी । sp < sp2 < sp3
- अध्रुवीय अणु में परमाणुओं के मध्य बन्ध लम्बाई , ध्रुवीय अणु में बन्ध लम्बाई की तुलना में अधिक होती है ।
आबंध ऊर्जा ( Bond energy )
किसी अणु के परमाणुओं के मध्य किसी विशेष बन्ध ( 1 मोल ) को तोड़कर उन्हें गैसीय अवस्था के परमाणुओं में , परिवर्तित करने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है ; वह बन्ध की विघटन ऊर्जा या बन्ध ऊर्जा कहलाती है । बन्ध ऊर्जा को kJmol-1 के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है ।
अतः बन्ध की विघटन ऊर्जा जितनी अधिक होगी बन्ध उतना ही अधिक मजबूत होगा ।
आबंध ऊर्जा को प्रभावित करने वाले कारक
- परमाणु का आकार बढ़ने पर , बन्ध लम्बाई भी बढ़ जाती है तथा बन्ध की विघटन ऊर्जा उतनी ही कम हो जाती है तथा बन्ध की शक्ति उतनी ही कम जाती है ।
- यदि समान परमाणुओं के मध्य बन्धों की संख्या बढ़ती है तो बन्ध की संख्या बढ़ने के साथ – साथ बन्ध की विघटन ऊर्जा भी बढ़ जाती है क्योंकि परमाणु पास – पास आ जाते हैं ।
- बन्धीय परमाणुओं पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म की संख्या बढ़ने पर , परमाणुओं के मध्य प्रतिकर्षण उतना ही अधिक बढ़ जाता है तथा उनकी बन्ध विघटन ऊर्जा उतनी ही कम हो जाती है ।
- यदि किसी संकरित कक्षक की प्रकृति जितनी अधिक होगी तब उसकी बन्ध ऊर्जा भी उतनी ही अधिक हो जायेगी । अतः बन्ध ऊर्जा का घटता क्रम होगा , sp > sp2 > sp3
- ऋण विद्युतता में अन्तर बढ़ने पर , बन्ध ध्रुवीयता भी बढ़ जाती है और बन्ध ध्रुवीयता बढ़ने पर बन्ध की शक्ति भी उतनी ही बढ़ जाती है तथा उसकी बन्ध ऊर्जा का मान भी बढ़ जाता है । जैसे निम्न में बन्ध ऊर्जा का क्रम , H – F > H – Cl > H – Br > H – I ,
- हैलोजन CI- CI > F – F > Br – Br > I – I , में बन्ध ऊर्जा क्रम ,अनुनाद बन्ध ऊर्जा बढ़ाता है ।
आबंध कोण ( Bond angle )
यदि अणु तीन या तीन से अधिक परमाणुओं से मिलकर बना होता है तो बन्धीय कक्षकों के मध्य औसत कोण ( दो सहसंयोजक बन्धों के मध्य ) बन्ध कोण ( θ ) कहलाता है ।
बन्ध कोण को प्रभावित करने वाले कारक
( i ) केन्द्रीय धातु या परमाणु से जुड़े आयन या समूह के मध्य प्रतिकर्षण बन्ध कोण को बढ़ा अथवा घटा सकता है ।
( ii ) संकरण में s – संकरित बन्ध का s- लक्षण बढ़ने पर बन्ध कोण भी बढ़ जाता है sp < sp2 < sp3
( iii ) यदि इलेक्ट्रॉन युग्मों की संख्या बढ़ती है तो बन्ध कोण लगभग 2.5 % घटता जाता है ।
आबन्ध कोटि ( Bond Order )
किसी अणु में दो परमाणुओं के मध्य स्थित आबन्धों की संख्या को आबन्ध कोटि कहते हैं । जैसे- H2 ( H – H ) आबन्ध कोटि =1, O2 ( O = O ) आबन्ध कोटि =2 है ।
समइलेक्ट्रॉनीय स्पीशीज ( अणु तथा आयन ) में आबंध कोटि समान होती है जैसे F2 तथा O22- में आबन्ध कोटि 1 है दोनों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 18 है ।
इसी प्रकार N2 , CO तथा NO+ की आबन्ध कोटि भी समान है जो कि 3 है । सामान्यत : आबन्ध कोटि बढ़ने पर आबन्ध एन्थैल्पी बढ़ती है , अतः आबन्ध लम्बाई कम होती है इस कारण स्थायित्व बढ़ता है अर्थात्
आबन्ध एन्थैल्पी ∝ आबन्ध कोटि
आबन्ध\spaceलम्बाई = \frac {1}{आबन्ध \spaceकोटि}