डाल्टन का परमाणु सिद्धांत क्या है ? [ Dalton’s Atomic Theory ] जॉन डाल्टन के परमाणु सिद्धांत की कमियां डाल्टन के परमाणु सिद्धांत के दोष इस आर्टिकल में डाल्टन का परमाणु सिद्धांत, डाल्टन का परमाणु सिद्धांत के महत्वपूर्ण बिंदु , डाल्टन के परमाणु सिद्धांत की कमियां दोष को समावेश किया है
डॉल्टन का परमाणु सिद्धान्त [ Dalton’s Atomic Theory In Hindi ]
जॉन डॉल्टन ने 1808 में डॉल्टन का परमाणु सिद्धान्त के नाम से विख्यात अपना सिद्धान्त दिया । डाल्टन परमाणु सिद्धांत के अनुसार द्रव्य बहुत छोटे – छोटे अविभाज्य कणों से मिलकर बना है , जिन्हें परमाणु कहते हैं , किसी भी परमाणु को पदार्थ के उस साधारण कण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेता है ।
आधुनिक अनुसंधानों ने विश्वसनीय रूप से सिद्ध किया है , कि परमाणु एक अविभाज्य कण नहीं है , यह इलेक्ट्रॉनों , प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों जैसे छोटे – छोटे भागों में विभाजित किया जा सकता है ।
यद्यपि परमाणु अत्यन्त छोटा है , फिर भी इसकी एक निश्चित जटिल रचना होती है । आधुनिक परमाणु संरचना मुख्यतः रदरफोर्ड के परमाणुओं पर किये गये प्रकीर्णन सिद्धान्त तथा ऊर्जा के क्वांटीकरण की परिकल्पना पर आधारित है ।
जॉन डॉल्टन ने 1808 में डॉल्टन एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया जिसे डाल्टन का परमाणु सिद्धान्त कहते हैं ।
डॉल्टन का परमाणु सिद्धान्त के विभिन्न बिन्दु निम्नलिखित हैं :-
- द्रव्य बहुत छोटे – छोटे अविभाज्य कणों से मिलकर बना है , जिन्हें परमाणु कहते हैं ।
- एक तत्व के सभी परमाणु समान होते हैं , अर्थात् उनकी आकृति , आकार , द्रव्यमान आदि सभी गुण धर्म समान होते हैं , जबकि भिन्न भिन्न तत्वों के परमाणु द्रव्यमान , आकृति , आकार आदि भिन्न – भिन्न होते हैं ।
- एक से अधिक तत्वों के परमाणु निश्चित अनुपात में संयोजन करके यौगिक बनाते हैं ।
- परमाणुओं को किसी रासायनिक अभिक्रिया अथवा भौतिक परिवर्तन द्वारा न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है ।
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डॉल्टन का परमाणु सिद्धान्त की सीमाएँ कमियां ( Limitations of the Theory )
डाल्टन का परमाणु सिद्धान्त रासायनिक संयोग के बहुत से नियमों को समझाने में सफल रहा सिवाय गैलुसाक के आयतनों के संयोग के नियम को । हालांकि इस सिद्धान्त की कुछ सीमाएँ हैं जो कि निम्नलिखित हैं :
- परमाणु को अविभाज्य कण के रूप में नहीं रखा जा सकता क्योंकि यह उप परमाण्वीय कणों – इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन में विभाज्य है ।
- समस्थानिकों की उपस्थिति के कारण एक ही तत्व के भिन्न – भिन्न द्रव्यमान हो सकते हैं ।
- यह रासायनिक संयोग के उन नियमों को समझता है जो द्रव्यमान पर आधारित हैं , आयतन पर आधारित नहीं हैं । अत : यह गैलुसाक के नियम को नहीं समझाता ।
- यह सिद्धान्त ये समझाने में असफल रहा कि भिन्न – भिन्न तत्वों के परमाणु उनके द्रव्यमान , आयतन तथा संयोजकता में भिन्न क्यों होते हैं ।
- यह सिद्धान्त यह नहीं समझा सका कि एक तथा भिन्न तत्वों के परमाणु आपस में संयोग कर अणु किस प्रकार बनाते हैं ।
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