रासायनिक आबंधन -फायान्स/फजान/ फायान का नियम– आयनिक बन्ध में आंशिक सहसंयोजी लक्षण ,से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
- फायान्स का नियम आयनिक बन्ध में आंशिक सहसंयोजी लक्षण
- कारक – आयनिक यौगिकों में सहसंयोजी लक्षण का आना
- फायान के नियम के अनुप्रयोग
जैसे महत्वपूर्ण टॉपिक से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी है।
फायान्स का नियम आयनिक बन्ध में आंशिक सहसंयोजी लक्षण
( Partial Covalent Character in the Ionic Bond )
( Fajan’s Rule )
फजान/ फायान्स का नियम : आयनिक यौगिकों या आयनिक बन्धों में ध्रुवीयता का बढ़ना या सहसंयोजक गुण का बढ़ना कई कारकों पर निर्भर करता है , इन कारकों का वर्णन फजान ने किया था अतः सम्बन्धित नियम फजान का नियम कहलाता है ।
यौगिक में जब धनायन , ऋणायन के इलेक्ट्रॉन अभ्र को अपनी ओर आकर्षित करता है तो उनके मध्य आवेश की मात्रा बढ़ती है जिससे दोनों नाभिकों के मध्य इलेक्ट्रॉनीय आवेश घनत्व में वृद्धि होती है ।
इसे ऋणायन का ध्रुवण कहते हैं तथा इससे आयनिक बन्ध में आंशिक सहसंयोजी लक्षण आ जाता है ।
धनायन की ध्रुवण क्षमता तथा ऋणायन के ध्रुवण ( Polarisation ) की मात्रा बढ़ने से आबन्ध में सहसंयोजी गुण अधिक आता है । इसे फायान का नियम भी कहते हैं।
कारक – आयनिक यौगिकों में सहसंयोजी लक्षण का आना
- धनायन पर अधिक आवेश
- धनायन का छोटा आकार
- ऋणायन पर अधिक आवेश
- ऋणायन का बड़ा आकार
- धनायन का उत्कृष्ट गैस विन्यास
दोनों आयनों में से किसी एक पर अत्यधिक आवेश :
जैसे – जैसे आयन पर आवेश बढ़ता है ऋणायन के बाह्य इलेक्ट्रॉनों के लिए धनायन का विद्युतस्थैतिक आकर्षण भी बढ़ता जाता है । जिसके फलस्वरूप सहसंयोजक बन्ध बनाने की इनकी क्षमता भी बढ़ती है ।
धनायन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास :
समान आकार तथा आवेश के दो आयनों के लिए , उत्कृष्ट गैस विन्यास ( अर्थात् बाह्यतम कोश में 18 इलेक्ट्रॉन ) वाला आयन , उत्कृष्ट गैस विन्यास ( अर्थात् बाह्यतम कोश में 8 इलेक्ट्रॉन ) वाले धनायन से अधिक ध्रुवीय होगा ।
धनायन का छोटा आकार-
छोटे आकार का धनायन , ऋणायन का ध्रुवण अधिक मात्रा में करता है जिससे बन्ध के सहसंयोजी लक्षण में वृद्धि होती है ।
ऋणायन का बड़ा आकार –
ऋणायन का आकार बढ़ने पर ध्रुवीकरण क्षमता बढ़ जाती है तथा सहसंयोजक गुण भी उतना ही अधिक हो जाता है ।
फायान के नियम के अनुप्रयोग
( Applications of Fajan’s Rule )
यौगिकों के गलनांक तथा क्वथनांक –
ऋणायन का ध्रुवण बढ़ने पर बन्ध के सहसंयोजी लक्षण में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप यौगिकों के गलनांक व क्वथनांक में कमी होती है क्योंकि सहसंयोजी यौगिकों के गलनांक व क्वथनांक आयनिक यौगिकों की अपेक्षा कम होते हैं ।
ऑक्साइडों की अम्लीय तथा क्षारीय प्रवृत्ति –
आयनिक विभव ( क ) का मान बढ़ने पर ऑक्साइडों की अम्लीय प्रवृत्ति बढ़ती है तथा क्षारीय प्रवृत्ति में कमी होती है ।
यौगिकों के रंग –
ऋणायन का आकार बढ़ने पर उसका ध्रुवण बढ़ता है जिससे यौगिक रंगीन होता है ।