कोणीय संवेग किसे कहते है ? कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धांत क्या है

कोणीय संवेग किसे कहते है ? Angular Momentum in Hindi  कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धांत क्या है इस पोस्ट में कोणीय संवेग ( Angular Momentum )  से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। 

इस आर्टिकल में कोणीय संवेग ( Angular Momentum in hindi  )  से सम्बंधित परिभाषाये ,कोणीय संवेग ( Angular Momentum ) के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु , कोणीय संवेग ( Angular Momentum )  के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र 

कोणीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त ( Law of Conservation of Angular Momentum ) कोणीय संवेग के कुछ व्यवहारिक उदाहरण ( Some Practical Examples of Angular Momentum ) ​को समावेश किया है, साथ में सभी महत्वपूर्ण सूत्र को अच्छे से लिखा गया है। फिर भी यदि कोई गलती है तो नीचे कमेंट करके   जरूर बताये ।

कोणीय संवेग ( Angular Momentum ) कोणीय संवेग किसे कहते है ?

जब कोई पिण्ड किसी अक्ष के परितः घूम रहा है तो उस अक्ष के परित : कणों के रेखीय संवेगों के आघूर्णो के योग को उस पिण्ड का उस अक्ष के परित : कोणीय संवेग कहते हैं । इसे ‘ L ‘ से प्रदर्शित करते हैं । यह सदिश राशि है । इसका विमीय सूत्र [ MLT -1] है ।

यदि घूर्णन गति करते कण का रेखीय संवेग P तथा इसका स्थिति सदिश r है तो कण का कोणीय संवेग ,

\mathbf{L}=\mathbf{r} \times \mathbf{p}
\mathrm{L}=r p \sin \phi   \hat{\mathrm{n}} \quad(\hat{\mathrm{n}}=\mathrm{L}\spaceकी \spaceदिशा \spaceमें\space एकांक \spaceसदिश)

👉यह एक अक्षीय सदिश है।

👉इसकी दिशा सदैव घूर्णन तल के लम्बवत् तथा घूर्णन अक्ष के अनुदिश होती है। 

👉कोणीय संवेग का S। मात्रक किग्रा-मी2-सेकण्ड-1 या जूल सेकण्ड है।

कण की वृत्तीय गति की स्थिति में

\mathrm{L}=\mathbf{r} \times \mathbf{p}=m(\mathbf{r} \times \mathbf{v})=m v r \sin \phi 
\therefore L=m v r=m r^{2} \omega (\because v=r \omega)

अथवा

L=I \omega
\left(\because m r^{2}=1\right)

सदिश रूप में, 

\mathrm{L}=I \omega
\therefore \quad \frac{d \mathbf{L}}{d t}=I \frac{d \omega}{d t}=I \alpha=\tau 
(\because \frac{d \omega}{d t}=\alpha )  तथा  (\tau=I \alpha)

अर्थात् कोणीय संवेग परिवर्तन की दर कण पर लगने वाले कुल बल आघूर्ण के तुल्य होती है।

कोणीय संवेग ( Angular Momentum ) से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

( 1 ) घूर्णन गति में कोणीय संवेग ( L या J ) का वही महत्त्व है जो रेखीय गति में रेखीय संवेग ( p ) का है । 

( ii ) जिस प्रकार रेखीय गति में वस्तु के रेखीय संवेग में परिवर्तन के लिए परिणामी बल उत्तरदायी होता है, ठीक उसी प्रकार घूर्णन गति में कोणीय संवेग में परिवर्तन के लिए परिणामी बल आघूर्ण उत्तरदायी होता है।

(iii) n कणों वाले निकाय का कुल कोणीय संवेग, सभी कणों के कोणीय संवेग का सदिश योग के तुल्य होता है। अर्थात्

 \quad \overrightarrow{\mathbf{L}}=\overrightarrow{\mathbf{L}}{1}+\overrightarrow{\mathbf{L}}{2}+\overrightarrow{\mathbf{L}{3}}+\ldots \ldots+\overrightarrow{\mathbf{L}}{n}

(iv) यदि अधिक परिमाण का बल आघूर्ण किसी कण पर अल्प अन्तराल के लिए आरोपित हो, तो ‘कोणीय आवेग’ निम्न रूप में दिया जायेगा

\overrightarrow{\mathrm{J}}=\int \vec{\tau} d t=\tau_{\mathrm{av}} \int_{\mathrm{t}{1}}^{t{2}} d t

अथवा कोणीय आवेग, 

\overrightarrow{\mathbf{j}}=\tau_{\mathrm{av}} \Delta t=\Delta \overrightarrow{\mathrm{L}}

∴  कोणीय आवेग = कोणीय संवेग में परिवर्तन

(v) बोहर (Bohr) के अनुसार, परमाणु की n वीं कक्षा में चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग,

L=n \frac{h}{2 \pi}

[जहाँ n कक्षा की संख्या है। ]

कोणीय संवेग संरक्षण के कुछ व्यवहारिक उदाहरण ( Some Practical Examples of Conservation Angular Momentum ) 

( 1 ) सर्कस का कलाकार , कलाबाजी दिखाते समय अपनी भुजाओं व पैरों को सिकोड़ लेता है क्योंकि ऐसा करने से जड़त्व आघूर्ण घटता है व कोणीय वेग बढ़ जाता है । 

( 2 ) यदि कोई व्यक्ति अपने हाथों में भारी वस्तु लिए घूर्णन करती मेज पर खड़ा है तब यदि अचानक वह अपनी भुजाओं को मोड़ लेता है तो उसका जड़त्व आघूर्ण कम हो जाने के कारण मेज के घूर्णन का कोणीय वेग बढ़ जाता है ।

( 3 ) सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार कक्षा में ग्रह परिक्रमण करते समय जब सूर्य के पास से गुजरता हे तो उसका जड़त्व आघूर्ण कम होने के कारण परिक्रमण का कोणीय वेग बढ़ जाता है और सूर्य से दूरी पर जड़त्व आघूर्ण अधिक होने के कारण परिक्रमण का कोणीय वेग घट जाता है ।

कोणीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त ( Law of Conservation of Angular Momentum )

\tau=\frac{dL}{dt}

अत : यदि कण ( अथवा निकाय ) पर आरोपित कुल बाह्य बल dL आघूर्ण शून्य हो , तो 

\frac{dL}{dt}=0

L = नियतांक 

कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धांत क्या है ?

अतः जब किसी निकाय पर परिणामी बाह्य बलाघूर्ण शून्य होते हैं तो निकाय या पिण्ड का कुल कोणीय संवेग नियत रहता है । यही कोणीय संवेग संरक्षण का नियम है ।

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