अंतरा-आण्विक बल [Intermolecular Forces]

अंतरा-आण्विक बल [Intermolecular Forces] से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। अंतरा – आण्विक बल अन्योन्य क्रियाकारी कणों के मध्य आकर्षण तथा प्रतिकर्षण बलों को अंतरा-आण्विक बल कहते हैं ।

  • अंतरा-आण्विक बल [Intermolecular Forces]
  • प्रकीर्णन बल अथवा लंडन बल
  • द्विध्रुव – द्विध्रुव बल
  • द्विध्रुव – प्रेरित द्विध्रुव बल
  • आयन – द्विध्रुव आकर्षण बल
  • आयन – प्रेरित द्विध्रुव आकर्षण बल

जैसे महत्वपूर्ण टॉपिक से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी है।

अंतरा – आण्विक बल

अंतरा – आण्विक बल ( Intermolecular Forces ) अन्योन्य क्रियाकारी कणों ( Interacting Particles ) के मध्य आकर्षण तथा प्रतिकर्षण बलों को अंतरा – आण्विक बल कहते हैं । ये कण अणु या परमाणु होते हैं ।

अन्तरा – आण्विक बल का तात्पर्य दो विपरीत आवेशित आयनों के मध्य वैद्युत बल या सहसंयोजी बन्ध ( अणुमें परमाणुओं को बाँधे रखने वाला बल ) नहीं है ।

अंतरा – आण्विक आकर्षण बलों को जोहानन वांडरवाल्स के सम्मान में वांडरवाल्स बल भी कहा जाता है । वान्डर वाल्स बल दुर्बल आकर्षण बल होते हैं जिनकी ऊर्जा 50 kJ/mol होती है ।

वांडर वाल्स ने वास्तविक गैसों के आदर्श व्यवहार से विचलन की व्याख्या इन बलों के आधार पर ही की है।

वांडर वाल्स बलों के परिमाण में भिन्नता होती है तथा इसके अन्तर्गत

  • प्रकीर्णन बल ( लंडन बल )
  • द्विध्रुव – द्विध्रुव बल
  • द्विध्रुव – प्रेरित द्विध्रुव बल

आते हैं । एक विशेष प्रकार की द्विध्रुव – द्विध्रुव अन्योन्य क्रिया हाइड्रोजन बंध है जो कि अपेक्षाकृत प्रबल होता है तथा यह केवल कुछ ही अणुओं में पाया जाता है । अत : इसे पृथक् वर्ग में रखा जाता है ।

एक आयन तथा एक – एक द्विध्रुव के मध्य आकर्षण बल ( आयन – द्विध्रुव बल ) को वान्डर वाल्स बल नहीं माना जाता है ।

प्रकीर्णन बल अथवा लंडन बल
[Dispersion Forces or London Forces]

परमाणु A तथा B के अस्थायी द्विध्रुव एक – दूसरे को आकर्षित करते हैं जिसे तात्क्षणिक द्विध्रुव – प्रेरित द्विध्रुव आकर्षण कहते हैं । इस प्रकार के आकर्षण बल को वैज्ञानिक के नाम के आधार पर लंडन बल या प्रकीर्णन बल भी कहते हैं । परमाणुओं के समान अध्रुवीय अणुओं में भी प्रकीर्णन बल पाया जाता है ।

उदासीन परमाणु तथा अध्रुवीय अणु वैद्युत सममित होते हैं अतः इनमें द्विध्रुव आघूर्ण नहीं होता है , इनमें इलेक्ट्रॉनिक आवेश अभ्र सममित रूप से वितरित रहता है

दो परमाणु या अणु A तथा B एक – दूसरे के समीप हैं । ऐसा सम्भव है कि कोई एक परमाणु माना A तात्क्षणिक रूप से असममित हो जाए , अर्थात् इसका आवेश अभ्र एक तरफ अधिक हो जाए , तो इसके कारण A परमाणु कुछ समय के लिए द्विध्रुव उत्पन्न हो जाता है , इसे तात्क्षणिक द्विध्रुव कहते हैं ।

यह अल्पकालिक तात्क्षणिक द्विध्रुव अन्य परमाणु B , के इलेक्ट्रॉन घनत्व को विरूपित कर देता है , जिससे परमाणु B में भी द्विध्रुव उत्पन्न हो जाता है जिसे प्रेरित द्विध्रुव कहते हैं ।

लंडन बल केवल लघु दूरी ( 500 Pm ) तक ही महत्त्वपूर्ण होते हैं तथा इनका परिमाण कणों की ध्रुवता पर निर्भर करता है । प्रकीर्णन बल सभी प्रकार के कणों में पाये जाते हैं । अणुओं का आकार तथा उनमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर प्रकीर्णन बलों में वृद्धि होती है । इसी कारण उनका क्वथनांक भी बढ़ता है ।

द्विध्रुव – द्विध्रुव बल ( Dipole Dipole Forces )

वे अणु जिनमें स्थायी द्विध्रुव होता है अर्थात् जिनमें द्विध्रुव आघूर्ण होता है , उनमें एक अणु का आंशिक धनावेशित सिरा , दूसरे अणु के आंशिक ऋणावेशित सिरे को अपनी ओर आकर्षित करता है । इसे द्विध्रुव द्विध्रुव आकर्षण कहते हैं । उदाहरण- HCl , HBr , SO2 , NH3

द्विध्रुव – द्विध्रुव आकर्षण बल लंडन बलों से प्रबल होता है लेकिन आयन – आयन आकर्षण बल से दुर्बल होता है । क्योंकि इसमें केवल आंशिक आवेश ही भाग लेते हैं ।

द्विध्रुव के मध्य दूरी बढ़ने पर ये आकर्षण बल घटते जाते हैं तथा द्विध्रुवों के मध्य आकर्षण ऊर्जा ध्रुवित अणुओं के मध्य दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है । स्थिर ध्रुवित अणुओं ( जैसे – ठोसों में ) के मध्य यह 1/r3 के तथा घूर्णित ध्रुवित अणुओं के मध्य यह 1/r6 के समानुपाती होती है , जहाँ । ध्रुवीय अणुओं के मध्य की दूरी है ।

द्विध्रुव – प्रेरित द्विध्रुव बल
( Dipole Induced Dipole Forces )

द्विध्रुव – प्रेरित द्विध्रुव आकर्षण बल स्थायी द्विध्रुव युक्त अणुओं तथा अध्रुवीय अणुओं के मध्य पाए जाते हैं । इसमें स्थायी द्विध्रुव युक्त अणु , अध्रुवीय अणु के इलेक्ट्रॉन अभ्र को विकृत करके उसमें भी ध्रुवता उत्पन्न कर देता है जिसे प्रेरित द्विध्रुव कहते हैं । इसी कारण इस आकर्षण को द्विध्रुव – प्रेरित द्विध्रुव आकर्षण बल कहा जाता है ।

यहाँ भी आकर्षण बल का परिमाण 1/r6 के समानुपाती होता है । प्रेरित द्विध्रुव आघूर्ण स्थायी द्विध्रुव के द्विध्रुव आघूर्ण तथा अध्रुवीय अणु में ध्रुवता पर निर्भर करता है तथा बड़े आकार के अणुओं का ध्रुवण आसानी से हो जाता है अत : उच्च ध्रुवणीयता से आकर्षण बलों की प्रबलता में वृद्धि होती है ।

आयन – द्विध्रुव आकर्षण बल
( Ion – Dipole Attraction Force )

जब एक स्थायी द्विध्रुव किसी आयन के सम्पर्क में आता है तो यह इस प्रकार अभिविन्यासित हो जाता है कि इसका विपरीत आवेशित सिरा , उस आयन की ओर हो जिससे इनके मध्य आकर्षण बल उत्पन्न होता है । अतः यह एक प्रकार का दिशात्मक आकर्षण है ।

आयन-द्विध्रुव आकर्षण , आयनिक यौगिकों में उपस्थित आयन -आयन आकर्षण बल की तुलना में दुर्बल होता है । आयनिक यौगिकों की ध्रुवीय विलायकों में विलेयता का मुख्य कारण आयन – द्विध्रुव आकर्षण ही होता है ।

आयन – प्रेरित द्विध्रुव आकर्षण बल
( Ion – Induced Attraction Force )

जब कोई आयन , किसी अध्रुवीय अणु के सम्पर्क में आता है तो यह आयन , उस अणु के इलेक्ट्रॉन अभ्र को विकृत करके उसे ध्रुवित कर देता है जिससे इनके मध्य आकर्षण होता है । अतः इसे आयन – प्रेरित द्विध्रुव आकर्षण बल कहते हैं ।

इस प्रकार का आकर्षण बल , बहुत कम होता है , क्योंकि अधिकांश अणुओं की ध्रुवणता ( ध्रुवित होने की क्षमता ) बहुत कम होती है ।
उदाहरण- Ag+ तथा Br2 में आकर्षण

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