परमाणु कक्षकों का अतिव्यापन सहसंयोजी आबंध की प्रकृति

रासायनिक आबंधन –परमाणु कक्षकों का अतिव्यापन सहसंयोजी आबंध की प्रकृति से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।

  • परमाणु कक्षकों का अतिव्यापन ( Overlapping of Atomic Orbitals )
  • अतिव्यापन के प्रकार तथा सहसंयोजी आबंध की प्रकृति
  • सिग्मा (σ) बन्ध पाई (π) बन्ध की तुलना

जैसे महत्वपूर्ण टॉपिक से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी है।

परमाणु कक्षकों का अतिव्यापन
( Overlapping of Atomic Orbitals )

जब दो परमाणु आबंध बनाने के लिए पास – पास आते हैं तो उनके अयुग्मित इलेक्ट्रॉनयुक्त कक्षकों का अतिव्यापन होता है ।

परमाणु कक्षकों के अतिव्यापन का अर्थ है इनका आंशिक रूप से मिश्रित होना , जिससे दोनों परमाणु कक्षकों का कुछ क्षेत्र उभयनिष्ठ ( Common ) हो जाता है , उसे अतिव्यापन क्षेत्र ( Overlapping zone ) कहते हैं तथा परमाणु कक्षकों के अतिव्यापन से बने नए कक्षकों को आण्विक कक्षक ( Molecular Orbital ) कहते हैं ।

अतिव्यापन क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन घनत्व अधिकतम होता है । अतिव्यापन के समय आकर्षण तथा प्रतिकर्षण बल समान हो जाते हैं और निकाय की ऊर्जा न्यूनतम हो जाती है तथा दोनों परमाणुओं के मध्य बन्ध बन जाता है ।

कक्षकों के गुणों के आधार पर अतिव्यापन धनात्मक , ऋणात्मक अथवा शून्य हो सकता है ।

अतिव्यापन के प्रकार तथा सहसंयोजी आबंध की प्रकृति
Types of Overlapping and Nature of Covalent Bonds

सहसंयोजी बन्ध के बनने में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के परमाणु कक्षकों ( s , p ) की दिशात्मकता के आधार पर विभिन्न प्रकार के अतिव्यापन सम्भव हैं ।

s कक्षक की गोलाकार आकृति के कारण यह किसी भी कक्षक के साथ सभी दिशाओं में समान रूप से अतिव्यापन कर सकता है । लेकिन p कक्षक दिशात्मक होते हैं ( Px , Py तथा Pz ) अतः ये एक निश्चित दिशा में ही अतिव्यापन कर सकते हैं ।

कक्षकों के अतिव्यापन के आधार पर सहसंयोजी बन्ध दो प्रकार के होते हैं-

  • सिग्मा ( σ ) आबंध तथा
  • पाई ( π ) आबंध ।

सिग्मा ( σ ) आबंध –

वह सहसंयोजी आबन्ध जो कक्षकों के अन्तर्नाभिकीय अक्ष पर , अक्षीय अतिव्यापन बनता है उसे σ आबंध कहते हैं । यह आबन्ध निम्न में से किसी भी एक प्रकार के कक्षीय अतिव्यापन द्वारा बन सकता है ।

( i ) s – s अतिव्यापन-

s – s अतिव्यापन में दो अर्धपूरित s कक्षक अन्तर्नाभिकीय अक्ष पर अतिव्यापन करते हैं । इससे σ बन्ध बनता है । उदाहरण- H2 का बनना ।

( ii ) s – p अतिव्यापन –

यह अतिव्यापन एक परमाणु अर्ध-पूरित s- कक्षक तथा दूसरे परमाणु के अर्ध-पूरित , p- कक्षक के बीच होता है । इस अतिव्यापन से भी σ बन्ध का निर्माण ही होता है ।
उदाहरण- HCl का बनना ।

( iii ) P – P अतिव्यापन –

यह अतिव्यापन दो परमाणुओं के अर्ध – पूरित p- कक्षकों के बीच होता है । इसमें समाक्ष अतिव्यापन से σ बन्ध तथा सम्पार्श्विक अतिव्यापन से π बन्ध बनता है ।
उदाहरण- Cl2 का बनना ।

पाई (π) आबंध –

कक्षकों के सम्पार्श्विक अतिव्यापन से बने बन्ध को π आबन्ध कहते हैं अर्थात् इसमें कक्षकों के अक्ष एक दूसरे के समांतर तथा अन्तर्नाभिकीय अक्ष के लम्बवत् होते हैं ।

सिग्मा (σ) बन्ध पाई (π) बन्ध की तुलना

सिग्मा (σ) बन्ध पाई (π) बन्ध
ये 2s- कक्षकों के या 2p- कक्षकों के या 1s और 1p- कक्षक के मध्य सिरस्थ अतिव्यापन द्वारा बनता है ।ये दो ये दो 2p- कक्षकों के सम्पार्श्विक अतिव्यापन के फलस्वरूप बनता है ।
ये तुलनात्मक रूप से अधिक प्रबल होते हैं ।ये तुलनात्मक रूप ये कम प्रबल होते हैं ।
इनकी बन्ध ऊर्जा 80 kcals होती है ।इनकी बन्ध ऊर्जा 65 kcals होती है ।
ये अधिक स्थायी है ।ये कम स्थायी हैं । म्बन्ध के बिना इनका कोई अस्तित्व नहीं है ।
ये स्वतन्त्र अस्तित्व में रहते हैं । σ बन्ध के बिना इनका कोई अस्तित्व नहीं है ।
ये कम क्रियाशील बन्ध है । ये अधिक क्रियाशील बन्ध है ।
अन्तनाभिकीय अक्ष के सापेक्ष इलेक्ट्रॉन अभ्र सममित होता है ।इलेक्ट्रॉन अभ्र परमाण्विय नाभिक के ऊपर व नीचे स्थित होता है ।

Leave a comment

error: Content is protected !!