[Hydrogen] आवर्त सारणी में हाइड्रोजन का स्थान से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। निम्न सभी टॉपिक की महत्वपूर्ण जानकारी नीचे दी गयी है
आवर्त सारणी में हाइड्रोजन का स्थान
हाइड्रोजन का आवर्त सारणी में विशिष्ट स्थान
आवर्त सारणी में हाइड्रोजन का स्थान
( Position of Hydrogen in the Periodic Table )
हाइड्रोजन आवर्त सारणी का प्रथम तत्त्व है जिसका इलेक्ट्रोनिक विन्यास ns1 है । यह विन्यास क्षार धातुओं ( प्रथम वर्ग ) के समान है ।
अतः हाइड्रोजन में विद्युत धनीय गुण होता है तथा इसकी संयोजकता 1 है एवं ऑक्सीकरण अवस्था +1 है ।
यह अपचायक भी है तथा अधातुओं से क्रिया करके ऑक्साइड , हैलाइड व सल्फाइड बनाता है , लेकिन इसकी आयनन एन्थैल्पी उच्च होती है अतः यह धातु गुण नहीं दर्शाता ।
हाइड्रोजन को वर्ग संख्या 1 में – S- खण्ड के तत्त्वों के ऊपर रखा गया है , यद्यपि यह हैलोजनों ( वर्ग संख्या 17 ) से भी अनेक समानताएँ दर्शाता है , क्योंकि इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 17 वें वर्ग से भी सम्बन्धित है जो संगत उत्कृष्ट गैस विन्यास से एक कम है तथा यह एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन ( -1 ) बनाता है ।
यह हैलोजेन के समान द्विपरमाण्वीय अणु बनाता है तथा विभिन्न तत्त्वों से क्रिया करके हाइड्राइड एवं अनेक सहसंयोजी यौगिक बनाता है । हाइड्रोजन की क्रियाशीलता हैलोजनों से कम होती है ।
हाइड्रोजन के कुछ गुण कार्बन के भी समान होते हैं । अतः हाइड्रोजन के इस अद्वितीय व्यवहार के कारण इसे आवर्त सारणी में अलग से रखा गया है ।
हाइड्रोजन आवर्त सारणी का पहला तत्व है । हाइड्रोजन को किसी भी विशिष्ट समूह में इसके इलेक्ट्रॉन लेने ( जब H- बनता है ) एवं इलेक्ट्रॉन खोने ( जब H + बनता है ) गुण के कारण नहीं रखा गया है ।
( i ) हाइड्रोजन को समूह-1 ( क्षारीय धातु ) में रखा गया है क्योंकि
( a ) इसमें , इसके 1s1 कक्षक ( बाह्य ) में एक इलेक्ट्रॉन होता है जो अन्य क्षार धातुओं के समान है जिनमें ( अक्रिय गैस ) ns1 विन्यास होता है ।
( b ) Li+ , Na+ … के समान यह भी एक संयोजी H+ आयन बनाता है ।
( c ) इसकी संयोजकता भी एक होती है ।
( d ) Li2O , Na2O के समान इसका ऑक्साइड भी ( H2O ) स्थायी है ।
( e ) Na , Li … के समान यह भी एक अच्छा अपचायक है ( परमाणु एवं अणु अवस्था में )
( ii ) हाइड्रोजन हैलोजन ( समूह VII A ) से भी इस तरह समानता दर्शाता है ।
( a ) F2 , Cl2 … के समान यह भी द्विपरमाणुक ( H2 ) है ।
( b ) F– , Cl– .. के समान यह भी एक इलेक्ट्रॉन प्राप्त कर ऋणायन H– बनाता है ।
( c ) हैलोजन CCl4 , SF2 Cl2 आदि के समान H का भी CH4 , C2H6 की तरह स्थायी अक्रिय गैस ( He ) अभिविन्यास है
( d ) F , Cl , … के समान H में भी द्विलक ( स्थायी अभिविन्यास ) का एक इलेक्ट्रॉन कम होता है । F , Cl , में भी अष्टक की अपेक्षा एक इलेक्ट्रॉन कम होता है , F – 2s22p5 ; Cl- 3s23p5
( e ) हैलोजन के समान H ( 1312 kJ mol-1 ) की भी आयनन ऊर्जा समान कोटि की होती है ।
( iii ) H की आयनन ऊर्जा क्षारीय धातुओं की अपेक्षा अति उच्च होती है । H+ का आकार भी क्षारीय धातु आयन की अपेक्षा अत्यन्त कम है । H अपनी इलेक्ट्रॉन बन्धुता ( 72.8kJ mol-1 ) के कम मान के कारण केवल प्रबल धन विद्युती धातु के साथ स्थायी हाइड्राइड बनाता है ।
( iv ) हाइड्रोजन के असामान्य व्यवहार की दृष्टि से , इसका आ सारणी में किसी निश्चित स्थान का निर्धारण अत्यन्त मुश्किल है इसलिये इसको व्यवहारिक रूप से समूह I में ( क्षारीय धातुओं के साथ ) रखते हैं एवं समूह VII ( हैलोजन के साथ ) में भी रखते हैं ।
हाइड्रोजन का आवर्त सारणी में विशिष्ट स्थान
( Specific Position of Hydrogen in Periodic Table )
हाइड्रोजन की हैलोजनों , क्षार धातुओं तथा कार्बन से समानता के कारण इसको आवर्त सारणी में एक निश्चित स्थान देना बहुत मुश्किल है । आवर्ती वर्गीकरण इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर आधारित है अतः इसे प्रथम वर्ग में रखना अधिक उचित प्रतीत होता है फिर भी इसके अद्वितीय व्यवहार के कारण इसे आवर्त सारणी में अलग से रखा गया है ।