कार्य ऊर्जा और शक्ति [ work power and energy in Hindi ]

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कार्य ऊर्जा और शक्ति [ work power and energy in Hindi ] किसे कहते हैं ?

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फिर यदि कोई गलती है तो नीचे कमेंट में जरूर बताये ।

कार्य किसे कहते हैं ?
ऊर्जा किसे कहते हैं ?
शक्ति किसे कहते हैं ?

कार्य (Work) 

किसी वस्तु पर लगाया गया बल उसकी स्थिति में परिवर्तन कर दे, तो यह कहा जाता है कि वस्तु पर कार्य किया गया है। 

वेक्टर रूप में बल द्वारा किया गया कार्य, बल (F) तथा विस्थापन (\Delta \mathrm{r}) के गुणनफल के बराबर होता है। 

अतः

 W=\mathbf{F} \cdot d \mathbf{r}=\mathbf{F} \cdot\left(\mathbf{r}_2-\mathbf{r}_{1}\right)

कार्य एक अदिश राशि है तधा इसका SI मात्रक ‘जूल’ तथा CGS मात्रक ‘अर्ग’ है। 

👉1 जूल =107 अर्ग

नियत बल द्वारा किया गया कार्य (Work Done by a Constant Force)

कार्य करने के लिए सदेव एक बल की आवश्यकता होती है। किसी वस्तु पर लगाया गया बल, जब उसकी स्थिति में परिवर्तन कर दे, तो बल की दिशा में क्रियात्मक बिन्दु के विस्थापन तथा बल के परिमाण का गुणनफल,किए गए कार्य को प्रदर्शित करता है। 

नियत बल द्वारा किया गया कार्य (Work Done by a Constant Force)

कार्य W= बल × (बल की दिशा में क्रियात्मक बिन्दु का विस्थापन)

W=\mathbf{F} \cdot \mathbf{s}
W=F s \cos \theta

जहाँ, θ विस्थापन तथा बल की क्रिया-रेखा के बीच बना कोण है

परिवर्ती बल द्वारा किया गया कार्य (Work Done by a Variable Force)

यदि आरोपित बल की दिश या परिमाण या दोनो परिवर्तित होते हों तो यह बल परिवर्ती बल कहलाता है।

माना एक परिवर्ती बल, कण या वस्तु को बल की दिशा में x1 से x2 तक विस्थापित करता है।

परिवर्ती बल द्वारा किया गया कार्य (Work Done by a Variable Force)

परिवर्ती बल F द्वारा बल की दिशा में कण या वस्तु को अतिसूक्ष्म dx विस्थापित करने में किया गया कार्य

dW=F.ds= चित्र में प्रदर्शित छोटी पट्टी PQRS का क्षेत्रफल कुल कार्य, 

W=\sum_{x_{1}}^{x_{2}} F d x

या 

\quad W=\int_{x_{1}}^{x_{2}} F d x=x_{1}\quad  से \quad  x_{2}

तक आकृति ABCD का घिरा क्षेत्रफल 

इस प्रकार बल-विस्थापन वक्र तथा विस्थापन अक्ष के बीच घिरा क्षेत्रफल (उचित बीजगणित चिन्हों सहित), बल द्वारा किए गए कार्य को प्रदर्शित करता है।

कार्य के प्रकार (Types of Work) 

कार्य धनात्मक (+ ve), ऋणात्मक (-ve) तथा शून्य (0) हो सकता है।

धनात्मक कार्य (Positive Work) 

यदि 0^{\circ} \leq \theta \leq 90^{\circ}, तब

W>0

अर्थात् कार्य धनात्मक है।

ऋणात्मक कार्य (Negative Work) 

यदि 90^{\circ}<\theta \leq 180^{\circ}, तब

W<0

अर्थात् कार्य ऋणात्मक है।

शून्य कार्य (Zero Work) 

यदि \theta=90^{\circ}, तब W=0 अर्थात् कार्य शून्य है। चूँकि कार्य W=\mathbf{F} \cdot \mathbf{d}=F d \cos \theta, अत: कार्य शून्य होगा, यदि

(i) आरोपित बल का मान शून्य हो।

(ii) बल आरोपित होने के बाद भी विस्थापन का मान शून्य हो।

(iii) यदि बल व विस्थापन अशून्य हों, तो भी कार्य का मान शून्य होगा यदि उनके मध्य कोण 90o हो।

कार्य से सम्बन्धित कुछ विशेष बिन्दु (Some Special Points Regarding Work)

(i) बल या (बल क्षेत्र) संरक्षी होता है यदि बल द्वारा किया गया कार्य, पथ पर निर्भर नहीं करता है। इस स्थिति में कार्य प्रारम्भिक व अन्तिम स्थिति पर निर्भर करता है। संरक्षी बल द्वारा एक परिबद्ध पथ मे किया गया कार्य शून्य होता है। संरक्षी बल के उदाहरण हैं-गुरुत्वाकर्षण बल, विद्युत बल, प्रत्यास्थ बल आदि।

(ii) बल या बल क्षेत्र असंरक्षी कहलाता है यदि बल द्वारा किया गया कार्य वस्तु द्वारा अनुसरण किये गये पथ पर निर्भर करता है। असंरक्षी बल के उदाहरण हैं-घर्षण बल, श्यान बल, अवमंदन बल, नाभिकीय बल आदि।

(iii) एक मजदूर m द्रव्यमान के एक पत्थर को h ऊँचाई तक उठाता है, तब मजदूर पत्थर पर एक बल F(=mg) ऊपर की ओर लगाता है। अत: मजदूर द्वारा किया गया कार्य

=F h \cos \theta=F h=m g h
\left(\because \cos 0^{\circ}=1\right.)

गुरुत्वीय बल द्वारा किया गया कार्य

=m g(h) \cos 180^{\circ}=-m g h

(iv) यदि एक वस्तु समतल पर गतिमान है जिसका गतिक घर्षण गुणांक \mu_{k} है, तो नियत चाल से वस्तु को गतिमान रखने के लिये आरोपित

बल

F=f_{k}=\mu_{k} N

F का कार्य बल, \quad W=F s=\left(\mu_{k} N\right) s

जहाँ, N= अभिलम्ब प्रतिक्रिया

s= बल की दिशा में विस्थापन

Read कार्य – ऊर्जा प्रमेय [ Work – Energy Theorem proof in Hindi ]

ऊर्जा (Energy) 

किसी वस्तु के कार्य करने की क्षमता को उस वस्तु की ऊर्जा कहते ऊर्जा के अनेक रूप हैं; जैसे-यान्त्रिक ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा तथा रासायनिक ऊर्जा, इत्यादि। 

👉ऊर्जा एक अदिश राशि है 

👉इसका SI मात्रक कार्य के समान (जूल) है।

गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) 

किसी वस्तु या पिण्ड में उसकी गति या चाल के कारण कार्य करने की क्षमता को गतिज ऊर्जा कहते हैं। यदि वस्तु या पिण्ड का द्रव्यमान m तथा वेग v है, तो वस्तु की गतिज ऊर्जा का आंकिक मान निम्न सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है

K=\frac{1}{2} m v^{2}

किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा हमेशा धनात्मक होती है। ऋणात्मक गतिज ऊर्जा सम्भव नहीं है।

गतिज ऊर्जा व संवेग में सम्बन्ध

K=\frac{p^{2}}{2 m}
 p=\sqrt{2 m K}

गतिज ऊर्जा का मान निर्देश तन्त्र पर निर्भर करता है। ट्रेन में बैठे व्यक्ति की ट्रेन के सापेक्ष गतिज ऊर्जा शून्य होती है पर पृथ्वी के सापेक्ष अशून्य मान होता है।

स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy) 

किस्री वस्तु या पिण्ड में उसकी स्थिति या विन्यास के कारण जो ऊर्जा होती है, वह उसकी स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।

किसी वस्तु की स्थितिज ऊर्जा उस कार्य से-भी मापी जाती है जो उस वस्तु को एक शून्यांकी-स्थिति से वर्तमान स्थिति में लाने में किया गया है अथवा जो वह वस्तु अपनी वर्तमान स्थिति से शून्यांकी-स्थिति में जाने पर कर सकती है। 

स्थितिज ऊर्जा केवल संरक्षी बल क्षेत्र के लिये समझायी जाती है। असंरक्षी बल क्षेत्र के लिये इसका कोई महत्त्व नहीं है।

स्थितिज ऊर्जा, संरक्षी बलों द्वारा किये गये कार्य के त्रणात्मक मान के बराबर होती है जो उस वस्तु को अनन्त से वर्तमान स्थिति तक लाने में किया जाता है।

U=-W=-\int_{\infty}^{r} \mathbf{F} \cdot d \mathbf{r}

👉सामान्यतया निर्देश बिन्दु. अनन्त पर लेते हैं तथा वहाँ स्थितिज ऊर्जा शून्य मानते हैं।

👉स्थितिज ऊर्जा अदिश राशि है लेकिन ये धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है।

👉यतिज ऊर्जा की तरह स्थितिज ऊर्जा भी निर्देश तन्त पर निर्भर करती हैं।

सामान्यतया गति विज्ञान में दो प्रकार की स्थितिज ऊर्जा होती हैं

(i) गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational Potential Energy) 

एक-दूसरे पर गुरूत्वाकर्षण बल लगाने वाले द्रव्य कणों की एक-दूसरे के सापेक्ष स्थिति के कारण निकाय में संचित कुल ऊर्जा, गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। 

पृथ्वी तल पर स्थित m द्रव्यमान के पिण्डा की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा

U_{0}=-\frac{G M_{e} m}{R_{e}}

जहाँ Re= पृथ्वी की त्रिज्या

तथा [katexM_{\mathrm{e}}=[/katex] पृथ्वी का द्रव्यमान हैं। पृथ्वी तल से h ऊँचाई पर पिण्ड की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जां,

U_{h}=-\frac{G M_{e} m}{R_{e}+h}

ii ) प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा ( Elastic Potential Energy ) 

वस्तु में उसकी प्रत्यास्थता के गुण के कारण उपस्थित ऊर्जा को प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा कहते हैं । यदि स्प्रिंग बल F = – kx , हो , 

स्प्रिंग की प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा 

U= \frac{1}{2}kx^{2}

जहाँ k, स्प्रिंग का बल नियतांक तथा x स्प्रिंग की लम्बाई में परिवर्तन है । प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा हमेशा धनात्मक होती है ।

शक्ति  (Power) 

कार्य करने की दर को शक्ति क्हते हैं। यदि t सेक्ण्ड में W किया जाए, तो शक्ति

P=\frac{W}{t}

बल F द्वारा विस्थापन dr में किया गया काय

dW=\mathbf{F} \cdot d \mathbf{r}

अत: बल द्वारा प्राप्त तार्क्षणिक शक्ति

P=\frac{d W}{d t}=\mathbf{F} \cdot \frac{d \mathbf{r}}{d t}=\mathbf{F} \cdot \mathbf{v}=F v \cos \theta

अत: शक्ति, बल तथा वेग के अदिश गुणनफल के बराबर होती है शक्ति एक अदिश राशि है, इसका SI मात्रक वाट है। 

1 वाट =1 जूल/से

किलोवाट =103 वाट, 1 मेगावाट =106 वाट =1 अश्व शक्ति =746 वाट 

किसी निकाय की शक्ति का मान समय के सापेक्ष उसकी गतिज ऊर्जा में परिवर्तन की दर के बराबर होता हैं

अर्थात्

P=\frac{d K}{d t}

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